बिना नियमित खाता बही के दाखिल टैक्स रिटर्न अमान्य नहीं-सुप्रीम कोर्ट
यह मुद्दा एक साझेदारी फर्म, के 3 वर्षों यानी 1990-91, 1991-92 और 1992-93 (“3 वर्ष”) के मूल्यांकन से संबंधित था। अपीलकर्ता ने, इसके लिए रिटर्न दाखिल करते समय, राजस्व द्वारा खोज और जब्ती अभियान के कारण बैलेंस शीट/खाते की नियमित बही दाखिल नहीं की थीं।
अधिनियम की धारा 143(3) के तहत मूल्यांकन आदेश पारित किए गए। तीन निर्धारण वर्षों के बाद के वर्षों में, अपीलकर्ता ने अंततः लाभ और हानि खाते के साथ-साथ बैलेंस शीट भी दाखिल की। इसकी जांच करते समय, मूल्यांकन अधिकारी को एक विसंगति मिली, जिसके बाद अपीलकर्ता और उसके भागीदारों के मूल्यांकन को निर्धारण वर्ष 1988-89 से 1993-94 के लिए फिर से खोलने की मांग की गई। अंततः, मूल्यांकन अधिकारी ने क्रेडिट प्राप्त करने के लिए साउथ इंडियन बैंक के समक्ष अपीलकर्ता द्वारा दायर लाभ और हानि खाते के साथ-साथ बैलेंस शीट का संज्ञान लिया, जिसके आधार पर निर्धारण वर्ष 1988-89 और 1989-90 के लिए मूल्यांकन पूरा किया गया। बैंक को सौंपे गए खातों के आधार पर पुनर्मूल्यांकन भी किया गया।
अदालत ने टिप्पणी की, “नियमित बैलेंस शीट और लाभ और हानि खाते के बिना दाखिल किया गया रिटर्न त्रुटिपूर्ण हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से अमान्य नहीं है।”
किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए, कई न्यायिक उदाहरणों पर विचार किया गया, जिसमें कलकत्ता डिस्काउंट कंपनी लिमिटेड बनाम आयकर अधिकारी (1960) मामले में अदालत की संविधान पीठ का निर्णय भी शामिल था। यह स्पष्ट किया गया कि “पूर्ण और सच्चा प्रकटीकरण” आय की रिटर्न की स्वैच्छिक फाइलिंग है जिसे निर्धारिती ईमानदारी से सच मानता है।
मामले के तथ्यों में, यह देखा गया कि राजस्व के अनुसार भी, निर्धारिती ने “झूठी” घोषणा नहीं की थी। अंत में, अदालत ने व्यक्त किया कि मामला “राय में बदलाव” को दर्शाता है, जो मूल्यांकन को फिर से खोलने का आधार नहीं हो सकता है।
तदनुसार, हाईकोर्ट के सामान्य आदेश को रद्द कर दिया गया और ट्रिब्यूनल के आदेश को बहाल कर दिया गया।
इस प्रकरण को पूर्णतया समझने के लिए कृपया निम्नांकित प्रकरण का अवलोकन करें
केस : एम/एस मंगलम प्रकाशन, कोट्टायम बनाम आयकर आयुक्त, कोट्टायम, सिविल अपील संख्या 8580-8582/ 2011 (और संबंधित मामले)
हीरा मोटवानी आयकर सलाहकार 9826177486