राजस्व अधिकारियों को विष्णु ने छकाया अमृत और कर दिया अमर
रायगढ़। 14 तारीख को एक आदेश के तहत प्रदेश की विष्णु सरकार ने अधिकारियों राजस्व अधिकारियों को एक पत्र के माध्यम से अमृत छका कर अमर बना दिया है। हालांकि पहले भी कोई सरकार किसी भी अधिकारी को बिना जांच के कोई भी दंड नहीं देती थी लेकिन अब जब कि उन पर कोई भी कार्यवाही करने से पहले विभागीय अनुमति लेना आवश्यक कर दिया गया है तो इस बात की पुष्टि हो जाती है कि अब राजस्व अधिकारियों का कोई भी बाल बांका नहीं होगा।
यहां प्रश्न यह उठता है कि जब राजस्व अधिकारी कुछ गलत करते ही नहीं है तो फिर डर किस बात का है? क्यों उन्हें अमृत छकाया जा रहा है? इसका मतलब यह है की ऊपर से नीचे तक सभी को यह बात मालूम है की कोई भी राजस्व न्यायालय में बैठा न्यायाधीश जिसे मात्र कुछ घंटे की ट्रेनिंग दी जाती है वह विधि विशेषज्ञ नहीं हो सकता है। अरे जब विधि का व्यवसाय करने वाले विधि वेत्ता अधिवक्ता गण जो बरसों मेहनत करते हैं और भी दिन-रात यही काम करते हैं फिर भी उनसे त्रुटियां हो जाती हैं तो फिर राजस्व अधिकारियों से त्रुटि क्यों नहीं हो सकती?
यह सर्व विदित है कि कोई भी राजस्व न्यायाधीश स्वयं फैसला नहीं लिखता है क्योंकि उसे फुर्सत ही नहीं है कि वह इन सब कामों में ध्यान दे पाए उसे तो वीआईपी ड्यूटी, मीटिंग सीटींग और अन्य विभागीय कार्यों से समय ही नहीं मिल पाता है। अतः उनके दिशा निर्देश पर यह सारे फैसले स्टेनो, बाबू, या फिर कुछ खास बाहरी लोग ही लिखते हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जिन मुद्दों पर माननीय जिला एवं सत्र न्यायालय निर्णय दे चुका होता है और उसके निर्णय की सत्यप्रतिलिपी केस में लगी होती है उन पर भी यह राजस्व अधिकारी सुपरसीट करते हुए अपना निर्णय दे देते हैं जिससे यह स्पष्ट है कि वह प्रकरण को पूरा पढ़ते ही नहीं है और ना ही पलट कर देख पाते हैं उन्हें तो बस सरसरी निगाह से दावा, प्रतिदावा और बाद में लिखित तर्क या फिर बहस के बीच कोई मुद्दा नजर आ जाए तो इन चार चीजों पर ही ध्यान केंद्रित करते हुए अपना निर्णय दे देते हैं । इसीलिए कोई भी राजस्व प्रकरण राजस्व न्यायालय से अंतिम तौर पर निर्णीत नहीं होता है उसे वापस माननीय सिविल न्यायालय में जाना ही पड़ता है।
कुछ दिनों पूर्व एक बड़े जज साहब ने सार्वजनिक मंच पर अपना दुख प्रकट करते हुए कहा था कि देश के न्यायालय में प्रकरणों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और पीड़ित को न्याय पाने में वर्षों लग जाते हैं। इसका कारण ही यह राजस्व न्यायालय होते हैं जो बिना सोचे समझे फैसला देते हैं और इन फैसलों पर कोई भी कार्यवाही उनके खिलाफ नहीं हो सकती है। जबकि होना यह चाहिए कि यदि साक्ष्य से परे कोई अधिकारी लीपापोती करके अपना निर्णय सुनाते हैं तो ऐसे में सिविल न्यायालय को स्वयं संज्ञान लेते हुए उसे दंडित करना चाहिए या फिर ऊपर के राजस्व न्यायालय यदि यह पाते हैं कि नीचे में अधीनस्थ राजस्व न्यायालय ने जानबूझकर कोई गलती की है तो उस अधिकारी के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही करें ।
परंतु ऐसा होता नहीं है इसीलिए पीड़ित पक्षकार न्याय पाने के लिए जो उसका सद्भाविक, नैतिक और संवैधानिक हक है उसके लिए वह अन्य एजेंसियों के पास जा सकता है परंतु इस आदेश के बाद वे रास्ते भी बंद कर दिए गए हैं । इसलिए यह कहा जा सकता है की “विष्णु” सरकार ने उन्हें अमृत छका कर अमर बना दिया है। अब जितने भी उटपटांग फैसले जिस व्यक्ति को भी करवाने हो उसके लिए यह अमृत काल बहुत महत्वपूर्ण है। मोदी जी के अमृत काल के मध्य विष्णु जी के अमृत काल का फायदा चालाक किस्म के व्यक्ति, भू माफिया , छुटभैये नेता और भ्रष्ट अधिकारी बहुत आनंदपूर्वक ले सकते हैं। प्रेम से बोलिए राजा रामचंद्र की जय।